श्री कृष्ण जन्माष्टमी: व्रत का महत्व और विधि

श्री कृष्ण जन्माष्टमी

कृष्ण जन्माष्टमी: भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में मनाई जाने वाले पर्व को जन्माष्टमी या कृष्ण जन्माष्टमी कहते है। यह पर्व भाद्र महीने के कृष्ण पक्ष के अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इसी दिन भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुवा था। यह पर्व हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन के व्रत का विशेष महत्व है।

व्रत रखकर भक्तजन भगवान श्रीकृष्ण को प्रसन्न करते है। माना जाता है की इस दिन व्रत उपवास करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। आइए जानते है, इस दिन व्रत करने का महत्व और विधि:–

श्री कृष्ण जन्माष्टमी: व्रत का महत्व और विधि
जय श्री कृष्ण


व्रत का महत्व:


इस दिन सच्चे मन से व्रत रखने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का व्रत करने से व्यक्ति आध्यात्मिक उन्नति की ओर बढ़ता जाता है। श्रीकृष्ण की कृपा से जीवन में सुख-समृद्धि आने लगती है। श्रीकृष्ण के जीवन को सुननेऔर उनके उपदेशों का पालन करने से करते व्यक्ति सत्कर्म की और बढ़ता है,और धर्म का पालन करता है।

व्रत के दौरान उपवास से शरीर को शुद्धि मिलती है। जिससे मानसिक शांति प्राप्त होती है, और व्यक्ति का स्वास्थ्य बेहतर होता है। श्रीकृष्ण के चरित्र से प्रेरणा लेकर व्रतधारी अपने जीवन में सद्गुणों का विकास करता है। यह व्रत भक्तों को अहंकार, क्रोध, और लोभ जैसी बुराइयों को दूर करता है।


व्रत की विधि:


जन्माष्टमी के दिन सुबह स्नान करके व्रत का संकल्प लें। व्रत का संकल्प लेते समय यह प्रार्थना करें कि भगवान श्रीकृष्ण आपकी भक्ति और व्रत को स्वीकार करें। स्नान के बाद भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमा या फोटो को एक साफ स्थान पर स्थापित करें। उन्हें शुद्ध जल, गंगा जल, और दूध से स्नान कराएं, वस्त्र पहनाएं और पुष्पमाला अर्पित करें।

जन्माष्टमी व्रत में उपवास रखना आवश्यक है। उपवास के दौरान फलाहार किया जा सकता है, लेकिन अन्न ग्रहण नहीं किया जाता। कुछ लोग निराहार व्रत रखते हैं, जबकि कुछ केवल फल, दूध, और पानी का सेवन करते हैं। श्रीकृष्ण का जन्म मध्यरात्रि को हुआ था, इसलिए इस समय विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है।

इस समय श्रीकृष्ण के जन्म का उत्सव मनाया जाता है, जिसमें भजन-कीर्तन, श्रीमद्भगवद गीता का पाठ और आरती का आयोजन किया जाता है।पूजा के बाद भगवान श्रीकृष्ण को विशेष रूप से तैयार किए गए प्रसाद का भोग लगाएं। प्रसाद में मक्खन, मिश्री, पंजीरी आदि शामिल करे, जो भगवान को अत्यंत प्रिय हैं। अगले दिन प्रातःकाल व्रत का पारण करें। इस दौरान भगवान श्रीकृष्ण की आरती करें और उन्हें भोग अर्पित करें। इसके बाद ही अन्न ग्रहण करें।


निष्कर्ष:

कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत भक्तों के लिए अतिफलदायी होता है। इस दिन श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन होकर अपने जीवन को शुद्ध और संतुलित बना सकते हैं। यह व्रत न केवल आध्यात्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसे रखने से मानसिक शांति और शारीरिक स्वास्थ्य में भी सुधार होता है।

श्रीकृष्ण के जीवन और उपदेशों का अनुसरण करते हुए, जन्माष्टमी का व्रत व्यक्ति को आत्मिक उन्नति की ओर प्रेरित करता है और जीवन में सुख-समृद्धि लाता है।

कृष्ण जन्माष्टमी कब मनाई जाती है?

कृष्ण जन्माष्टमी हिंदू पंचांग के अनुसार भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। यह आमतौर पर अगस्त या सितंबर महीने में पड़ती है।

कृष्ण जन्माष्टमी व्रत का क्या महत्व है?

कृष्ण जन्माष्टमी व्रत का उद्देश्य भगवान श्रीकृष्ण के प्रति भक्ति और श्रद्धा प्रकट करना है। यह व्रत आध्यात्मिक उन्नति, मनोकामनाओं की पूर्ति, और सद्गुणों के विकास के लिए रखा जाता है।

जन्माष्टमी व्रत कैसे रखा जाता है?

इस दिन भक्त उपवास रख कर भगवान श्रीकृष्ण की पूजा, भजन-कीर्तन, और मध्यरात्रि में जन्मोत्सव मनाया जाता है। अगले दिन प्रातः व्रत का पारण किया जाता है।

क्या जन्माष्टमी व्रत सभी उम्र के लोग रख सकते हैं?

हाँ, जन्माष्टमी व्रत सभी उम्र के लोग रख सकते हैं। हालांकि, बीमार, गर्भवती महिलाएं, और बुजुर्गों को व्रत रखने से पहले डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए।

जन्माष्टमी व्रत के पारण की विधि क्या है?

जन्माष्टमी के दूसरे दिन प्रातःकाल व्रत का पारण किया जाता है। पारण के समय भगवान श्रीकृष्ण की आरती की जाती है और उन्हें भोग अर्पित किया जाता है। इसके बाद अन्न ग्रहण किया जाता है।

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  1. […] कृष्ण जन्माष्टमी: भगवान श्रीकृष्ण भाद्र मास के अष्टमी तिथि को जन्म लिए थे, इसलिए हमलोग उसी दिन को यह पर्व मनाते है। इस दिन वृंदावन में जन्माष्टमी भव्य और विशेष रूप से मनाया जाता है। यह क्षेत्र भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं का प्रमुख केंद्र रहा है। […]

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