History of Basukinath Temple: पवित्र यात्रा फौजदारी बाबा का ।

History of Basukinath Temple in jharkhand

बाबा बासुकीनाथ मंदिर परिचय:


History of Basukinath Temple: बासुकीनाथ मंदिर झारखंड राज्य के दुमका जिले में स्थित है । यह झारखंड के प्राचीन मंदिरों में से एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है, जिसे फौजदारी बाबा भी कहते है। मंदिर के पास ही एक तालाब है जिसे शिवगंगा कहा जाता है। शिवगंगा के अंदर भी एक शिवलिंग है।

साल में एक बार पानी कम कर शिवगंगा में स्थित शिवलिंग की विशेष पूजा की जाती है । झारखंड के देवघर में स्थित बाबा बैजनाथ धाम के बाद दूसरा सबसे बड़ा तीर्थ स्थल बाबा बासुकीनाथ है। बाबा बैद्यनाथ धाम से बासुकीनाथ धाम की दूरी 44 km हैं। देश विदेश के विभिन्न जगहों से जो भी बाबा बैद्यनाथ में पूजा करने आते है वो बासुकीनाथ भी पूजा करने जाते है।

मान्यता है की जो भी बाबा बैद्यनाथ पूजा करने आते है और बासुकीनाथ नही आते तो पूजा अधूरी रहती है। यहां पूजा करने से भक्तो की मनोकामना तुरंत पूरी होती है इसी कारण बाबा बासुकीनाथ को फौजदारी बाबा कहते है। बासुकीनाथ मंदिर में स्थापित शिवलिंग स्वयं निकला हुवा है।हर साल श्रावणी मेले यानी की सावन के महीने में यहां भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है।  और सभी के जीवन में सुख-शांति की प्राप्ति होती है।

History of Basukinath Temple
बासुकीनाथ मंदिर


बाबा बासुकीनाथ मंदिर का इतिहास : ( History of Basukinath Temple )


पौराणिक कथा के अनुसार इस मंदिर का नाम नागराज बासुकी के नाम पर पड़ा है। समुद्र मंथन के समय जिस रस्सी को पड़कर मंथन किया जा रहा था वह नागराज बासुकी थे। इसी जगह पर नागराज बासुकी ने भगवान शिव का पूजा अर्चना कर शिव को प्रसन्न किया था जिस कारण से इस जगह का नाम बासुकीनाथ कहलाने लगा।

एक और पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में इस क्षेत्र में घना जंगल था। बहुत दिनों से बर्षा नहीं होने के कारण पूरे क्षेत्र में अकाल पड़ गया था।  वासु नामक एक ब्राह्मण कंद मूल खोजने जंगल गया। कंद मूल की तलाश में उसके कुदाल का प्रहार एक पत्थर पर पड़ा तो उससे खून की धारा बहने लगी।

पत्थर से खून की धार बहता देख वासु डर कर वहा से भाग गया। तब रात में उसे स्वप्न आया और कहा कि तुम डरो मत मैं नाग नाथ हूं। जाओ तुम मेरी पूजा करो। आज से मैं  बासुकीनाथ के नाम से जाना जाऊंगा। और तभी से यहां बाबा बासुकीनाथ की पूजा अर्चना होने लगा।

बासुकीनाथ मंदिर की स्थापत्य कला काफी आलौकिक और आकर्षक देखी जाती है। मंदिर का निर्माण प्राचीन शैली में किया गया है।  मंदिर का गर्भगृह में स्वयंभू शिवलिंग विराजमान है।सभी श्रद्धालु भक्तजन यहां आकर शिवलिंग पर जल और बेलपत्र चढ़ाकर अपनी मनोकामना पूरी करने की प्रार्थना करते हैं।


धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व:


बासुकीनाथ मंदिर का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व अत्यधिक है। यह स्थान विशेष रूप से सावन के महीने में अत्यधिक महत्वपूर्ण हो जाता है, जब लाखों श्रद्धालु बाबाधाम में  जल चढ़ाने के बाद बाबा बासुकीनाथ जल चढ़ाने आते हैं। पूरे सावन भादो कांवर लेकर श्रद्धालु जल चढ़ाने आते रहते है । बाबा बासुकीनाथ की महिमा अपरंपार है। यहां का जगह काफी सुंदर और मनोरम है। इसे मनोकामना शिवलिंग भी कहते हैं।

History of Baba Basukinath Temple

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बासुकीनाथ मंदिर कहा है?

बाबा बासुकीनाथ मंदिर झारखंड राज्य के दुमका जिले में स्थित है।

बासुकीनाथ का रहस्य क्या है?

बासुकीनाथ में स्वयंभू शिवलिंग है। यहां हर मनोकामना तुरंत पूर्ण होती है इसलिए इसे फौजदारी बाबा भी कहते हैं।

बासुकीनाथ मंदिर कैसे जाए?

वायु मार्ग से:
देवघर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा  सबसे नजदीकी हवाई अड्डा है, जो बासुकीनाथ मंदिर से लगभग 43 किमी की दूरी पर है। हवाई अड्डे से आप टैक्सी,या प्रीपेड कैब सेवा का उपयोग कर बासुकिनानाथ मंदिर तक पहुंच सकते हैं।
वायु मार्ग से:
देवघर अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा  सबसे नजदीकी हवाई अड्डा है, जो बासुकीनाथ मंदिर से लगभग 43 किमी की दूरी पर है। हवाई अड्डे से आप टैक्सी,या प्रीपेड कैब सेवा का उपयोग कर बासुकिनानाथ मंदिर तक पहुंच सकते हैं।
सड़क मार्ग से:
बासुकीनाथ देश के प्रमुख शहरों से सड़क मार्ग द्वारा अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। देवघर दुमका मेन लाइन पर यह स्थित है।आप राज्य परिवहन निगम की बस सेवाओं या निजी बस सेवाओं का उपयोग कर यह पहुंच सकते है।

बासुकीनाथ नाम क्यों पड़ा ?

पौराणिक कथा के अनुसार इस मंदिर का नाम नागराज बासुकी के नाम पर पड़ा है। समुद्र मंथन के समय जिस रस्सी को पड़कर मंथन किया जा रहा था वह नागराज बासुकी थे। इसी जगह पर नागराज बासुकी ने भगवान शिव का पूजा अर्चना कर शिव को प्रसन्न किया था जिस कारण से इस जगह का नाम बासुकीनाथ कहलाने लगा।

देवघर से बासुकीनाथ की दूरी कितनी है

देवघर से बासुकीनाथ की दूरी 44 किलोमीटर है।

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