देवी भागवत कथा की महिमा :—
श्रीमद् देवी भागवत पुराण में कहा गया है कि, जो मानव भक्ति पूर्वक देवी भागवत की कथा सुनते हैं सिद्धि सदा उनके संनिकट खेलती रहती है। अतः उन्हें निरंतर इस पुराण का श्रवण करना चाहिए। सतयुग , त्रेता और द्वापर में अनेकों धर्म थे; किंतु कलयुग के लिए एक पुराण श्रवण ही धर्म रह गया है।
इसके सिवा मनुष्यों का उद्धार करने वाला दूसरा कोई धर्म ही नहीं है। कलयुग के मनुष्य धर्म और आचार से हिन एवं अल्पायु होंगे। उनके कल्याण के लिए भगवान व्यास ने पुराण संज्ञक इस अमृत रस का निर्माण किया है। इस देवी भागवत के श्रवण में मास और दिवस का कोई खास नियम नहीं है। मनुष्य सदा इसका श्रवण कर सकते हैं।
आश्विन, चैत्र , बैशाख और जेठ के महीने में तथा चार नवरात्रों में सुनने से यह पुराण विशेष फल देने वाला होता है। नवरात्र में इसका अनुष्ठान करने पर मनुष्य सभी पुण्य कर्मों से अधिक फल पा लेते हैं; अतः इसे “नवाह यज्ञ” कहा गया है। जो कलुषित विचार वाले ,पापी, मूर्ख, मित्रद्रोही, वेद की निंदा करने वाले, हिंसा में संलग्न और नास्तिक हैं, उनका भी कलियुग में इस नवाह यज्ञ से निस्तार हो जाता है।

महान तप, व्रत, तीर्थ, दान, नियम, हवन और यज्ञ आदि करने पर भी मनुष्यों को जो फल दुर्लभ रहता है, वह भी नवाह यज्ञ से सुलभ हो जाता है। अतः देवी भागवत सर्वोत्तम पुराण माना जाता है। धर्म,अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति के लिए यह सर्वोपरि साधन है।
सूर्य के कन्या राशि में स्थित होने पर आश्विन मास के शुक्ल पक्ष में अष्टमी तिथि के दिन श्रीमद् देवी भागवत की पुस्तक सोने के सिंहासन पर स्थापित करके भक्ति पूर्वक योग्य ब्राह्मण को दान करनी चाहिए। ऐसा करने से वह पुरुष देवी का प्रतिभाजन होकर उनके परमपद का अधिकारी बन जाता है।
जो पुरुष देवी भागवत के एक श्लोक अथवा आधे श्लोक का भी भक्ति भाव से नित्य पाठ करता है, उस पर देवी प्रसन्न हो जाती है। महामारी, हैजा आदि भयंकर बीमारियां तथा अनेकों उत्पात भी देवी भागवत के श्रवण मात्र से शमन हो जाते हैं। पूतना आदि बालग्रहकृत तथा भूतप्रेतजनित जो भय है, वे इस देवी भागवत के श्रवण से पास भी नहीं फटक सकते। भक्तिपूर्वक देवी भागवत का पाठ और श्रवण करने वाला मनुष्य धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के फल का अधिकारी हो जाता है।
भगवान श्री कृष्ण प्रसेन को खोजने के लिए चले गए। बहुत समय तक नहीं लौटे। तब वासुदेव जी ने यह देवी भागवत कथा की महिमा सुना। इसकी प्रभाव से उन्होंने अपने प्रिय पुत्र श्री कृष्ण को शीघ्र पाकर आनंद लाभ किया था।
जो पुरुष देवी भागवत कथा की महिमा भक्ति के साथ पढ़ता और सुनता है, भुक्ति और मुक्ति उसके करतलगत हो जाती है। यह कथा अमृतस्वरूपा है, इसके श्रवण से अपुत्र पुत्रवान, दरिद्र धनवान और रोगी आरोग्यवान हो जाता है। जो स्त्री वंध्या काकवंध्या और मृतवत्सा हो, वह भी देवीभागवत की कथा सुनने से दीर्घजीवी पुत्र की जननी बन जाती है।
जिसके घर में श्रीमद्देवीभागवत की पुस्तक का नित्य पूजन होता है, वह घर तीर्थ स्वरूप हो जाता है। वहां रहने वाले लोगों के पास पाप नहीं टिक सकते। जो अष्टमी, नवमी अथवा चतुर्दशी के दिन भक्ति के साथ यह कथा सुनता या पढ़ता है, उसे परमसिद्धि उपलब्ध हो जाती है। इसका पाठ करने वाला यदि ब्राह्मण हो तो प्रकांड विद्वान, क्षत्रिय हो तो महान शूरवीर, वैश्य हो तो प्रचुर धनाढ्य और शुद्र हो तो अपने कुल में सर्वोत्तम हो सकता है।
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देवी भागवत की कथा सुनने से क्या लाभ है?
श्रीमद् देवी भागवत पुराण में कहा गया है कि, जो मानव भक्ति पूर्वक देवी भागवत की कथा सुनते हैं सिद्धि सदा उनके संनिकट खेलती रहती है। अतः उन्हें निरंतर इस पुराण का श्रवण करना चाहिए। सतयुग , त्रेता और द्वापर में अनेकों धर्म थे; किंतु कलयुग के लिए एक पुराण श्रवण ही धर्म रह गया है।
श्रीमद् देवी भागवत की पुस्तक दान करने से क्या लाभ है?
सूर्य के कन्या राशि में स्थित होने पर आश्विन मास के शुक्ल पक्ष में अष्टमी तिथि के दिन श्रीमद् देवी भागवत की पुस्तक सोने के सिंहासन पर स्थापित करके भक्ति पूर्वक योग्य ब्राह्मण को दान करनी चाहिए। ऐसा करने से वह पुरुष देवी का प्रतिभाजन होकर उनके परमपद का अधिकारी बन जाता है।
नवाह यज्ञ किसे कहते है ?
नवरात्र में इसका अनुष्ठान करने पर मनुष्य सभी पुण्य कर्मों से अधिक फल पा लेते हैं; अतः इसे “नवाह यज्ञ” कहा गया है। जो कलुषित विचार वाले ,पापी, मूर्ख, मित्रद्रोही, वेद की निंदा करने वाले, हिंसा में संलग्न और नास्तिक हैं, उनका भी कलियुग में इस नवाह यज्ञ से निस्तार हो जाता है।
[…] देवी भागवत एक प्रमुख पुराण है, जो देवी महात्म्य और देवी उपासना के महत्व को दर्शाता है। देवी भागवत पुराण में देवी दुर्गा, देवी लक्ष्मी, देवी सरस्वती और अन्य देवियों की महिमा का वर्णन किया गया है। इसमें 12 स्कंध (भाग) और 18,000 श्लोक हैं, जो देवी की विविध कथाओं और उपदेशों से भरे हुए हैं। इस पुराण का मुख्य उद्देश्य देवी की आराधना और उनकी शक्तियों का विस्तार से वर्णन करना है। […]