मनुष्य का चरित्र परिचय
मनुष्य का चरित्र संसार में सबसे बड़ा होता हैं। धन गया तो कुछ नहीं गया, स्वास्थ्य गया तो कुछ गया, लेकिन यदि चरित्र गया तो सब कुछ गया, क्योंकि चरित्रवान के आगे समस्त संसार नतमस्तक होता हैं। चरित्र का निर्माण बचपन से ही प्रारंभ होता है और जीवनभर विभिन्न अनुभवों और संस्कारों के माध्यम से विकसित होता है। यह व्यक्ति की सोच, विचारधारा, और निर्णय लेने की क्षमता को प्रभावित करता है।
चरित्र न केवल व्यक्ति को व्यक्तिगत संतोष देता है, बल्कि समाज में भी उसका सम्मान बढ़ाता है। यह जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में सफलता और सुख-शांति का आधार बनता है। सशक्त और सुदृढ़ चरित्र वाले व्यक्ति समाज के विकास और सुधार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अच्छे चरित्र का निर्माण न केवल व्यक्तिगत विकास के लिए आवश्यक है, बल्कि समाज के समग्र कल्याण के लिए भी अनिवार्य है।

किसी जिज्ञासु ने एक ज्ञानी से पूछा — ‘हर मनुष्य की बनावट तो एक —जैसी होती है, फिर कुछ लोग पतन के गर्त में क्यों डूब जाते हैं ? ज्ञानी ने उसे अगले दिन एक तालाब के पास आने को कहा । जिज्ञासु नियत समय पर वहां पहुंच गया। ज्ञानी वहां दोनों हाथों में एक-एक कमंडलु लिए मौजूद था । उसने दोनों कमंडलु जिज्ञासु को दिखाएं ।
एक कमंडलु तो ठीक था पर दूसरे के पेंदे में छेद था । ज्ञानी ने पहले कमण्डलु को तालाब में फेका । वह पानी में तैरने लगा । फिर उसने दूसरा कमण्डलु फेंका वह कुछ देर तो तेरा, पर जैसे-जैसे उस पैंदे के छेद से पानी भरता गया , वह डूबता गया और तलाब में विलीन हो गया ।
ज्ञानी ने जिज्ञासु से पूछा— ‘बताओ दोनों कमंडलुवो की भिन्न-भिन्न दशा क्यों हुई? जिज्ञासु ने सहज भाव से बता दिया कि एक कमंडलु में छिद्र के होने तथा दूसरे में न होने के कारण दोनों की दशाएं अलग-अलग है।
इस पर ज्ञानी ने कहा— ‘ यदि इसकी तुलना मनुष्य से करो, तो तुम्हें पता चलेगा कि आदमी में भी दोष रूपी अनेक छिद्र होते हैं। इन्हीं छिद्रों से दुष्प्रवृत्तियों उसके भीतर घुस जाती है और उसका पतन हो जाता है जिन में यह छिद्र नहीं होते, वे इन दुष्प्रवृत्तियों से दूर रहते हुए भवसागर पार कर जाते हैं । लोग बाहर से एक जैसे दिखते हैं, पर उनके चरित्र अलग-अलग होते हैं ।
मनुष्य के चरित्र पर ही निर्भर है उन्नति या अवनति । धर्म के बिना मनुष्य का चरित्र शून्य के बराबर है । जो अपनी इच्छाओं को नियंत्रित रखते हैं और उन्हें सत्कर्मों का रूप देते हैं, उन्हीं को चरित्रवान कहा जा सकता है। अच्छे चरित्र के मुख्य तत्वों में ईमानदारी, दया, संयम, न्याय, और सम्मान शामिल हैं। चरित्रवान व्यक्ति वह होता है जो नैतिकता, ईमानदारी, और सच्चाई के उच्च मानकों पर खरा उतरता है। ऐसे व्यक्ति के पास स्पष्ट नैतिक मूल्यों का एक मजबूत सेट होता है, जो उनके जीवन के हर पहलू में झलकता है।
मुख्य तत्व:
- ईमानदारी: सत्य बोलने और अपने कर्तव्यों का पालन करने की आदत।
- दया: दूसरों के प्रति सहानुभूति और मदद का भाव।
- संयम: अपने विचारों, शब्दों और कार्यों पर नियंत्रण।
- न्याय: सही और गलत के बीच स्पष्ट भेदभाव और न्यायपूर्ण निर्णय।
- सम्मान: स्वयं और दूसरों के प्रति आदरभाव। चरित्रवान व्यक्ति सभी का सम्मान करता है, चाहे वह किसी भी स्थिति में हो, और कभी किसी का अनादर नहीं करता।
मनुष्य का चरित्र अच्छा रहना क्यों जरूरी है ?
संसारमें व्यक्ति का चरित्र सबसे बड़ा हैं। धन गया तो कुछ नहीं गया, स्वास्थ्य गया तो कुछ गया, लेकिन यदि चरित्र गया तो सब कुछ गया, क्योंकि चरित्रवान के आगे समस्त संसार नतमस्तक होता हैं।
चरित्रवान किसे कहते है ?
जो अपनी इच्छाओं को नियंत्रित रखते हैं और उन्हें सत्कर्मों का रूप देते हैं, उन्हीं को चरित्रवान कहा जा सकता है।